क्यों।
Hello everyone. This is Mohammad Yusuf, I hope you all are fine and doing well. I am back with my new poem. It is my shortest poem so far but it is very special. Every line in this poem came directly from my heart. Hope you will love it. Here we go. "क्यों" बचपन की मासूमियत से थे बंधे, दुनियादारी की आदत क्यों लग गई? मुस्कुराते और हस्ते निकलते थे दिन, उदासी की आदत क्यों लग गई? अनजाने में भी नेकी करते थे हम, गुनाहों की आदत क्यों लग गई? हार कर भी मुस्कुराते थे हम, यह जीत की तलब क्यों लग गई? सूरज की चमक का करते थे इंतज़ार, यह अंधेरे की आदत क्यों लग गई? प्यार और मोहब्बत से घिरे रहते थे हम, अकेलेपन की आदत क्यों लग गई? किताबो और खिलौनों में थी ज़िन्दगी बंद, बाहर की हवा क्यों लग गई? खेतो और बगीचों में घूमते थे हम, एक बंद कमरे की आदत क्यों लग गई? दोस्तो के साथ बिताते थे दिन, काम की आदत क्यों लग गई? भाग दौड़ कर जो कभी थकते ना थे, उन्हें दवाइयों की आदत क्यों लग गई? सफल हो कर खुश होना चाहते थे, लेकिन सिर्फ सफलता की भूक क्यों लग गई? भौरों की धुन में मद